Monday 27 October 2014

दवाएं




बेअसर होती दवाएं

28-09-14 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने देश के तमाम डॉक्टरों से कहा है कि वे आम सर्दी, जुकाम, बुखार के लिए एंटीबायोटिक दवाएं न लिखें। यह एक अच्छा कदम है। यह इसलिए जरूरी है कि काफी पहले हुए एक अध्ययन में यह देखने में आया था कि देश में लगभग 90 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं व्यर्थ में ही दी जाती हैं। आम सर्दी, जुकाम या बुखार के लगभग सारे मरीजों को डॉक्टर एंटीबायोटिक जरूर लिख देते हैं, जबकि इन समस्याओं में ये दवाएं किसी भी तरह से कारगर नहीं हैं। यह स्थिति लगभग एंटीबायोटिक दवाओं के आविष्कार के समय से चली आ रही है, लेकिन अब इस पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत इसलिए है कि इस प्रवृत्ति के गंभीर नतीजे सामने आ रहे हैं। सबसे गंभीर नतीजा यह है कि रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर रहे हैं। अब ऐसे बैक्टीरिया अस्तित्व में आ गए हैं, जिन्हें सुपरबग कहा जा रहा है, क्योंकि उन पर किसी भी एंटीबायोटिक का असर नहीं हो रहा है। कुछ ऐसे बैक्टीरिया की उत्पत्ति भारत में ही हुई है। समस्या इतनी विकट हो गई है कि विशेषज्ञ एंटीबायोटिक युग की समाप्ति की चेतावनी दे रहे हैं। और अगर ऐसा हुआ, तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ही खतरे में पड़ जाएगा। बिना असरदार एंटीबायोटिक के कई संक्रामक रोग काबू में नहीं आ सकते और सजर्री तो तकरीबन नामुमकिन हो जाएगी। यह लापरवाही सिर्फ भारत में है, ऐसा नहीं है, लगभग पूरी दुनिया में एंटीबायोटिक का दुरुपयोग होता है। फर्क सिर्फ यह है कि विकसित देशों में कुछ कड़ाई है, इसलिए स्थिति थोड़ी बेहतर है और भारत में किसी भी किस्म का नियंत्रण न होने से डॉक्टर एंटीबायोटिक लापरवाही से लिखते हैं, दवाओं की दुकान वाले या फिर कंपाउंडर या और अप्रशिक्षित व्यक्ति भी धड़ल्ले से बांटते हैं और आम जनता भी अपने मन से इन दवाओं का इस्तेमाल करती है। एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरिया को मारती हैं, इसलिए तार्किक रूप से इनका इस्तेमाल सिर्फ बैक्टीरिया संक्रमण में होना चाहिए, जबकि हमारे यहां किसी भी बीमारी में ये दी जाती हैं। आम सर्दी, जुकाम या बुखार ज्यादातर वायरस के संक्रमण से होते हैं, इसलिए इन परिस्थितियों में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल रोकना बहुत जरूरी है। पिछले 20 साल में किसी नए एंटीबायोटिक की खोज नहीं हुई है और पुराने एंटीबायोटिक बेअसर होते जा रहे हैं। अगर ऐसा है, तो आखिरकार डॉक्टर एंटीबायोटिक का दुरुपयोग क्यों करते हैं? बुनियादी तौर पर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल डॉक्टर और मरीज के रिश्तों में व्यवसायीकरण का नतीजा है। डॉक्टर को लगता है कि अगर वह मरीज से कहे कि उसे किसी हल्की-सी दर्द निवारक दवा या घरेलू उपचार के अलावा किसी चीज की जरूरत नहीं है, तो मरीज उस पर भरोसा नहीं करेगा। डॉक्टर और मरीज एक-दूसरे के संपर्क में नहीं रहते, इसलिए डॉक्टर पहले ही एंटीबायोटिक दे देता है कि अगर भूले-भटके भविष्य में बैक्टीरिया संक्रमण हो जाए, तो उस पर तोहमत न आए। न डॉक्टर को मरीज पर भरोसा होता है, न मरीज भारी-भरकम प्रिस्क्रिप्शन के बिना संतुष्ट होता है। दवा कंपनियों का प्रलोभन भी होता है, जो डॉक्टर को व्यर्थ की दवाएं लिखने के लिए लालच देती रहती हैं। लेकिन इन तमाम वजहों से चिकित्सा व्यवसाय ही खतरे में पड़ गया है। अब वक्त है कि एंटीबायोटिक दवाओं का जितना भी प्रभाव बचा है, उसे बचाकर रखा जाए, क्योंकि हमारे पास बैक्टीरिया को नियंत्रित करने का दूसरा कोई प्रभावशाली तरीका नहीं है। आईएमए को देर से ही होश आया, लेकिन आया तो।

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